मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||
जीते थे जिनके नाम पर मरते थे उन्ही पे,
थे सुनते ,थे गाते , सदके उन्ही के,
न रहने को मंजर न पिलाने को साकी,
न सहने को दर्द का किनारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||
हैं चुभते फूल इन पलकों, इन आँखों में ,
हैं बस गए आंसूं समझकर घर, इन आखों में,
न जीने को जीवन, न मरने को मौत,
न पीने को पानी, न सांसों का इशारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||
मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||
बहुत बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंअनु
..............
जवाब देंहटाएंखूबसूरत नज़्म
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest post वासन्ती दुर्गा पूजा
LATEST POSTसपना और तुम
अच्छा लिखा है. ये किसी का 'असर' है या कुछ और...
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब | अत्यंत सुन्दर नज़्म | बेहतरीन अंदाज़ | नवरात्री और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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वहा गुरू मान गये बड़ा दम हैं आपकी कलम ........ सॉरी की-बोर्ड में
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(25-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
waah ....bahut badhiya kuchh to ho ...
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