गुरुवार, 11 जुलाई 2013

ज़िन्दगी !!!


ज़िन्दगी!!! एक अनसुलझे सवालों की किताब है,
है समंदर सी फैली , बादलों सी घिरी और न जाने क्या - क्या,
कुछ अधुरी सी , पर क्या , पता नहीं, न जवाब मालूम,
न जानने का सबब है, न जानने को बेताब है..
ज़िन्दगी एक अनसुलझे सवालों की किताब है|

है दरिया भी मिल चुका साहिलों से अब ,
जानते हुए सब कुछ, न जाना है इसने कुछ भी,
रहता है अश्क बनके खाबों का टूटा सफ़र आज भी,
ज़िन्दगी समझ लो बस ऐसा ही एक एक खाब है,
ये ज़िन्दगी ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है|

ज़ब दिल की दस्तक पर सिहर नहीं उठती,
उठता है तो सिर्फ दर्द, और दर्द का एक बहाना,
ज़ब हर वक़्त लगता है की कल कितना खुशनुमा था,
मांगती धड़कनों से भी उनके चलने का हिसाब है,
बस यही ज़िन्दगी है और ये ज़िन्दगी,
ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है...

--देवांशु

मंगलवार, 11 जून 2013

जहाँ सितारों का !!!

याद है,

छिटके तारों की छतरी वाले आसमाँ के नीचे,

अक्सर फोन पर बात करते हुए,

सितारों को जोड़कर जब एक दूसरे का नाम लिखा करते थे,

तुम कहतीं ,

मेरा नाम सितारों में जंचता है,

मैं कहता,

तुम्हारा नाम आसमाँ  में सुन्दर दिखता है |

 

फिर एक रोज़ आसमाँ  में बादल छा गए,

खूब बरसे पर छंटे नहीं |

और जब हटे तो साथ होने के सारे आसार साथ बहा ले गए |

 

कल रात मैं यूँ ही सय्यारों में भटक रहा था,

कुछ सितारों को मिलके अपना नाम बनाते देखा,

शायद तुमने फिर से याद किया होगा |

 

अब सितारों के जहाँ में मिलना ही हमारी किस्मत है !!!!

 

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे


मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

जीते थे जिनके नाम पर मरते थे उन्ही पे,
थे सुनते ,थे गाते , सदके उन्ही के,
न रहने को मंजर न पिलाने को साकी,
न सहने को दर्द का किनारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

हैं चुभते फूल इन पलकों, इन आँखों में ,
हैं बस गए आंसूं समझकर घर, इन आखों में,
न जीने को जीवन, न मरने को मौत,
न पीने को पानी, न सांसों का इशारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||