मंगलवार, 10 जुलाई 2012

ना जीना ना मरना

पैदा मैं हुआ नहीं,
अवतार मुझ जैसों का होता नहीं|
कटती है घुट के ज़िंदगी,
वक्त कभी बेख़ौफ़ सा होता नहीं |

एक रात जब आंसू की चादर बिछेगी,
एक भी मोती न होगा उसमें,
सिर्फ एक अनचाहा पानी,
और ज़िंदगी का नमक....

बस उस दिन रूह शांत हो जायेगी,
जो पैदा नहीं होते उन्हें मरने का हक नहीं,
जिन्होंने अवतार नहीं लिया, उनका,
परिनिर्वाण भी होता नहीं !!!!!


--देवांशु 

23 टिप्‍पणियां:

  1. जो पैदा नहीं होते उन्हें मरने का हक नहीं,
    जिन्होंने अवतार नहीं लिया, उनका,
    परिनिर्वाण भी होता नहीं !!!!! बेहतरीन भाव

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  2. एक रात जब आंसू की चादर बिछेगी,
    एक भी मोती न होगा उसमें,
    सिर्फ एक अनचाहा पानी,
    और ज़िंदगी का नमक..
    ह्म्म्म ....

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  3. ई क्या सब गड़बड़-सड़बड़ बात करते हैं जी। पैदा नहीं हुये, अवतार नहीं हुआ। ऐसा माफ़िक बात तो कवि लोग करते हैं! आपको क्या हुआ जी? :)

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    1. बस ऐसे ही कबहिये कबहिये मूड सेंटिया जाता है जी :) :)

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  4. बहुत ही गहरी बात कह डी है आपने इस रचना के माध्यम से ... गहरा जीवन दर्शन ...

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  5. आंसुओं की चादर में ज़िन्दगी का नमक....
    बेहतरीन ख़याल....

    सुन्दर रचना.

    अनु

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  6. बहुत खूब ....
    शुभकामनायें आपको !

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  7. पैदा मैं हुआ नहीं,
    अवतार मुझ जैसों का होता नहीं|
    कटती है घुट के ज़िंदगी,
    वक्त कभी बेख़ौफ़ सा होता नहीं |

    जीवन के सत्यों को उजागर करती आपकी यह रचना ...एक गहन जीवन दर्शन प्रस्तुत करती है ...!

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  8. बहुत बढ़िया....
    सशक्त रचना
    अनु

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