तुम हाँ तुम ....
दास्ताँ कहो, या कोई सपना कहो जो अधूरा रह गया, या कहो एक सनक की बस किसी को पाना है...
सोमवार, 28 दिसंबर 2015
सालनामचा : २०१५
मंगलवार, 6 जनवरी 2015
जो तुझमें वफ़ा होती...
जो तुझमे वफ़ा होती
तो कमसकम एक बार रूकती, मुड़ती ।
हाथ चूमती या गले लग जाती ,
और कहती मुझे जाने दो|
जाने शायद तब भी न देता,
तुम भी रूकती नहीं ।
पर तुम न ठहरी ,मुड़ के भी ना देखा ।
ना वो आखिरी बात का टुकड़ा पूरा हो सका ।
ना लफ़ज़ मिले उस सवाल को जो बाकी रहा।
वो कहते हैं न की कोई तो वजह रही होगी दूर जाने की
यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता ।
सुनो, उसी वजह जानने में ये ऊमर कटेगी ।
तब तक तू ही बता
कैसे मान लूं की तुझमे वफ़ा थी !!!
मंगलवार, 21 जनवरी 2014
कैसे कहूं….
सूरज की किरणों के ज़मीं पर पड़ने से ठीक पहले,
अधजगे से बिस्तर पर पड़े हुए,
तुम्हारा जो मुस्कुराता हुआ चेहरा ज़हन में आ जाता है |
मैं उसी मुस्कान के तसव्वुर में उठता हूँ,
कैसे कहूं !!! मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ |
शाम अधूरी सी ही बीतती है अब ,
ना मालूम कुछ अनछुआ सा रह जाता हो जैसे हर रोज़ |
पर जब ढलते सूरज के साथ चिड़िया घर वापस आती है ,
उसकी आवाज़ में मैं तुम्हारे तराने सुनता हूँ,
कैसे कहूं !!! मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ |
--देवांशु
गुरुवार, 11 जुलाई 2013
ज़िन्दगी !!!
है समंदर सी फैली , बादलों सी घिरी और न जाने क्या - क्या,
कुछ अधुरी सी , पर क्या , पता नहीं, न जवाब मालूम,
न जानने का सबब है, न जानने को बेताब है..
ज़िन्दगी एक अनसुलझे सवालों की किताब है|
जानते हुए सब कुछ, न जाना है इसने कुछ भी,
रहता है अश्क बनके खाबों का टूटा सफ़र आज भी,
ज़िन्दगी समझ लो बस ऐसा ही एक एक खाब है,
ये ज़िन्दगी ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है|
उठता है तो सिर्फ दर्द, और दर्द का एक बहाना,
ज़ब हर वक़्त लगता है की कल कितना खुशनुमा था,
मांगती धड़कनों से भी उनके चलने का हिसाब है,
ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है...
मंगलवार, 11 जून 2013
जहाँ सितारों का !!!
याद है,
छिटके तारों की छतरी वाले आसमाँ के नीचे,
अक्सर फोन पर बात करते हुए,
सितारों को जोड़कर जब एक दूसरे का नाम लिखा करते थे,
तुम कहतीं ,
मेरा नाम सितारों में जंचता है,
मैं कहता,
तुम्हारा नाम आसमाँ में सुन्दर दिखता है |
फिर एक रोज़ आसमाँ में बादल छा गए,
खूब बरसे पर छंटे नहीं |
और जब हटे तो साथ होने के सारे आसार साथ बहा ले गए |
कल रात मैं यूँ ही सय्यारों में भटक रहा था,
कुछ सितारों को मिलके अपना नाम बनाते देखा,
शायद तुमने फिर से याद किया होगा |
अब सितारों के जहाँ में मिलना ही हमारी किस्मत है !!!!
गुरुवार, 11 अप्रैल 2013
मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||
जीते थे जिनके नाम पर मरते थे उन्ही पे,
थे सुनते ,थे गाते , सदके उन्ही के,
न रहने को मंजर न पिलाने को साकी,
न सहने को दर्द का किनारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||
हैं चुभते फूल इन पलकों, इन आँखों में ,
हैं बस गए आंसूं समझकर घर, इन आखों में,
न जीने को जीवन, न मरने को मौत,
न पीने को पानी, न सांसों का इशारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||
मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||