सोमवार, 6 अगस्त 2012

बारिश



कल रात आंसुओं की हल्की बूंदा-बांदी हुई,
और अज़ल से प्यासी ज़मीन-ए-हसरत तड़प उठी ।
कोई सैलाब भी ना आया, जो गम बह जाता,
बस बुझते अरमानों के धुंए से उमस सी भड़क उठी ।






आज फिर तेरी यादों के गहरे काले बादल छाये हैं ।
इस बारिश में मेरा खो जाना ही मुनासिब होगा शायद !!!!
--देवांशु

(Image from Flickr)

14 टिप्‍पणियां:

  1. आज मन की धरती पर भी कुछ बरसा है,
    उसका प्यार है शायद...

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  2. थोडा संभल के फिसलन बढ़ चली है भादों की :-)

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  3. कल 12/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. बाकी तो सब ठीक है बस ये बताओ कि अरमान बुझे हुये क्यों थे?

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  5. आज बारिशमें मेरा बह जाना मुनासिब होगा शायद ।
    वाह क्या बात है ।

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  6. आज फिर तेरी यादों के गहरे काले बादल छाये हैं ।
    इस बारिश में मेरा खो जाना ही मुनासिब होगा शायद !!!!
    वाह ...बहुत खूब पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ बहुत सुकून मिला एक अच्छी रचना पढने को मिली जड़ गई हूँ आपके ब्लॉग से

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  7. प्रेम की प्राकृतिक बिम्बो से अभिव्यक्त अनुपम प्रस्तुति...शुभ कामनाएं
    सादर!!

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  8. सुन्दर व भावपूर्ण रचना
    सादर

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  9. मन के भाव खूबसूरती से सजाये है शब्दों में

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  10. गहरे जज्बात रख दिए हैं,,इन चन्द पक्तियों में...|बहुत खूब |

    सादर |

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  11. बहुत ही पसंद आये आपके शब्द। ...पहली बार पढ़ रही हूँ आपका ब्लोग।

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