सोमवार, 28 दिसंबर 2015

सालनामचा : २०१५

कुछ कतरनें हैं बीतते बरस के शुरुआत की 

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"बाद मुद्दत के जैसे आफताब निकले, 
तो रौशनी को दरख्तों में बंद कर लेने की आरज़ू रहती है । 
तेरा प्यार भी कुछ ऐसा ही रहा है ।"

"क़त्ल होते हैं चंद मिनट गर एक सिगरेट से,
बहुत कम हैं तेरे बगैर बीतती ज़िन्दगी के सामने"

"दिल की ऐश-ट्रे रोज़ खाली करता हूँ मशक्कत से ,
तेरी यादों के टुकड़े फिर भर जाते हैं, ना जाने कहाँ से"

"पहचान कभी अजनबियों में भी निकल आती है,
कभी कोई अपना होकर भी पहचानता नहीं"

"मिला है एक पुराना अखबार ,
कागज़ातों के बण्डल से ,
तुम्हारी खुशबू जवां है देखो तो ।"

"अब वो चिट्ठी भी बैरंग वापस आ जाती है , 
जो खुद को लिखता हूँ "

"इश्क़ में बेवफा कोई होता है भला ,
तुम कभी नहीं थी और मैं आज भी नहीं "

"नशा छोड़ देने का मन करता है अक्सर,
तुम्हारी याद ज्यादा दिलाता है कमबख्त"

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२१०६ मुबारक हो सभी को !!!!


मंगलवार, 6 जनवरी 2015

जो तुझमें वफ़ा होती...

जो तुझमे वफ़ा होती
तो कमसकम एक बार रूकती, मुड़ती ।
हाथ चूमती या गले लग जाती ,
और कहती मुझे जाने दो|

जाने शायद तब भी न देता,
तुम भी रूकती नहीं ।

पर तुम न ठहरी ,मुड़ के भी ना देखा ।
ना वो आखिरी बात का टुकड़ा पूरा हो सका ।
ना लफ़ज़ मिले उस सवाल को जो बाकी रहा।

वो कहते हैं न की कोई तो वजह रही होगी दूर जाने की
यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता ।

सुनो, उसी वजह जानने में ये ऊमर कटेगी ।
तब तक तू ही बता
कैसे मान लूं की तुझमे वफ़ा थी !!!

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

कैसे कहूं….

 

सूरज की किरणों के ज़मीं पर पड़ने से ठीक पहले,

अधजगे से बिस्तर पर पड़े हुए,

तुम्हारा जो मुस्कुराता हुआ चेहरा ज़हन में आ जाता है |

मैं उसी मुस्कान के तसव्वुर में उठता हूँ,

कैसे कहूं !!! मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ |

 

शाम अधूरी सी ही बीतती है अब ,

ना मालूम कुछ अनछुआ सा रह जाता हो जैसे हर रोज़ |

पर जब ढलते सूरज के साथ चिड़िया घर वापस आती है ,

उसकी आवाज़ में मैं तुम्हारे तराने सुनता हूँ,

कैसे कहूं !!! मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ |

 

--देवांशु

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

ज़िन्दगी !!!


ज़िन्दगी!!! एक अनसुलझे सवालों की किताब है,
है समंदर सी फैली , बादलों सी घिरी और न जाने क्या - क्या,
कुछ अधुरी सी , पर क्या , पता नहीं, न जवाब मालूम,
न जानने का सबब है, न जानने को बेताब है..
ज़िन्दगी एक अनसुलझे सवालों की किताब है|

है दरिया भी मिल चुका साहिलों से अब ,
जानते हुए सब कुछ, न जाना है इसने कुछ भी,
रहता है अश्क बनके खाबों का टूटा सफ़र आज भी,
ज़िन्दगी समझ लो बस ऐसा ही एक एक खाब है,
ये ज़िन्दगी ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है|

ज़ब दिल की दस्तक पर सिहर नहीं उठती,
उठता है तो सिर्फ दर्द, और दर्द का एक बहाना,
ज़ब हर वक़्त लगता है की कल कितना खुशनुमा था,
मांगती धड़कनों से भी उनके चलने का हिसाब है,
बस यही ज़िन्दगी है और ये ज़िन्दगी,
ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है...

--देवांशु

मंगलवार, 11 जून 2013

जहाँ सितारों का !!!

याद है,

छिटके तारों की छतरी वाले आसमाँ के नीचे,

अक्सर फोन पर बात करते हुए,

सितारों को जोड़कर जब एक दूसरे का नाम लिखा करते थे,

तुम कहतीं ,

मेरा नाम सितारों में जंचता है,

मैं कहता,

तुम्हारा नाम आसमाँ  में सुन्दर दिखता है |

 

फिर एक रोज़ आसमाँ  में बादल छा गए,

खूब बरसे पर छंटे नहीं |

और जब हटे तो साथ होने के सारे आसार साथ बहा ले गए |

 

कल रात मैं यूँ ही सय्यारों में भटक रहा था,

कुछ सितारों को मिलके अपना नाम बनाते देखा,

शायद तुमने फिर से याद किया होगा |

 

अब सितारों के जहाँ में मिलना ही हमारी किस्मत है !!!!

 

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे


मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

जीते थे जिनके नाम पर मरते थे उन्ही पे,
थे सुनते ,थे गाते , सदके उन्ही के,
न रहने को मंजर न पिलाने को साकी,
न सहने को दर्द का किनारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

हैं चुभते फूल इन पलकों, इन आँखों में ,
हैं बस गए आंसूं समझकर घर, इन आखों में,
न जीने को जीवन, न मरने को मौत,
न पीने को पानी, न सांसों का इशारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

क्या ज़रुरत है मुझे सौ बरस जीने की….

मुझे भीष्म की तरह इच्छा-मृत्यु नहीं चाहिए,
ना चाहिए कोई जीवेत शरदः शतं का वरदान,
गर दे सकता है तो खुदा मुझे नेमत दे ,
लम्हों को रोक सकने की!!!
 image
वो एक लम्हा जब वो मेरे सबसे करीब हो,
मैं उसकी धड़कन सुन सकूं ,
उसे भी मेरे साँसें सुनाई दे रही हों,
हाँ बस वही लम्हा, थाम लूं, फ्रीज़ कर दूं |
 
और जब वो लम्हा गुज़रे ,
फिर गर तू मौत भी बख्शे तो नूर समझूंगा|
तू ही बता जब जिन्दगी खुद लम्हों में जीती है ,
तो क्या ज़रुरत है मुझे सौ बरस जीने की !!!!
--देवांशु