कल रात आंसुओं की हल्की बूंदा-बांदी हुई,
और अज़ल से प्यासी ज़मीन-ए-हसरत तड़प उठी ।
कोई सैलाब भी ना आया, जो गम बह जाता,
बस बुझते अरमानों के धुंए से उमस सी भड़क उठी ।
आज फिर तेरी यादों के गहरे काले बादल छाये हैं ।
इस बारिश में मेरा खो जाना ही मुनासिब होगा शायद !!!!
--देवांशु
(Image from Flickr)
(Image from Flickr)
आज मन की धरती पर भी कुछ बरसा है,
जवाब देंहटाएंउसका प्यार है शायद...
थोडा संभल के फिसलन बढ़ चली है भादों की :-)
जवाब देंहटाएंकल 12/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बाकी तो सब ठीक है बस ये बताओ कि अरमान बुझे हुये क्यों थे?
जवाब देंहटाएंआज बारिशमें मेरा बह जाना मुनासिब होगा शायद ।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है ।
आज फिर तेरी यादों के गहरे काले बादल छाये हैं ।
जवाब देंहटाएंइस बारिश में मेरा खो जाना ही मुनासिब होगा शायद !!!!
वाह ...बहुत खूब पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ बहुत सुकून मिला एक अच्छी रचना पढने को मिली जड़ गई हूँ आपके ब्लॉग से
प्रेम की प्राकृतिक बिम्बो से अभिव्यक्त अनुपम प्रस्तुति...शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंसादर!!
दिल को छू लेने वाली रचना
जवाब देंहटाएंकोमल अहसास लिए
जवाब देंहटाएंभावप्रद रचना.........
sundar rachna ...........dil ko bha gayi
जवाब देंहटाएंसुन्दर व भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंसादर
मन के भाव खूबसूरती से सजाये है शब्दों में
जवाब देंहटाएंगहरे जज्बात रख दिए हैं,,इन चन्द पक्तियों में...|बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंसादर |
बहुत ही पसंद आये आपके शब्द। ...पहली बार पढ़ रही हूँ आपका ब्लोग।
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