ना चाहिए कोई जीवेत शरदः शतं का वरदान,
गर दे सकता है तो खुदा मुझे नेमत दे ,
लम्हों को रोक सकने की!!!
वो एक लम्हा जब वो मेरे सबसे करीब हो,
मैं उसकी धड़कन सुन सकूं ,
उसे भी मेरे साँसें सुनाई दे रही हों,
हाँ बस वही लम्हा, थाम लूं, फ्रीज़ कर दूं |
और जब वो लम्हा गुज़रे ,
फिर गर तू मौत भी बख्शे तो नूर समझूंगा|
तू ही बता जब जिन्दगी खुद लम्हों में जीती है ,
तो क्या ज़रुरत है मुझे सौ बरस जीने की !!!!
--देवांशु