शुक्रवार, 4 मार्च 2011

चाँद का हिस्सा…

खुशनुमां सा है समां , शायद मेरी तबियत ही नासाज़ है,

यूँ तो खुश दिखता है सबको , पर मेरे हिस्से का चाँद मुझसे नाराज़ है|

 

घटता है, बढता है,  फिर  संभालता है अक्सर ,

पर इस बार ठहरा सा है , एकदम निःशब्द निष्ठुर…

कोई रोता ,  उफनाता , दहलाता ,  डगमगाता सा,

खत्म होने का सबकुछ, शायद यही आगाज़ है|

यूँ तो खुश दिखता है सबको , पर मेरे हिस्से का चाँद मुझसे नाराज़ है|

 

जीवन कि होती एक ही रीत, एक सपेरा एक लुटेरा,

एक ही जुगनू, एक ही रोशनी, एक उजाला एक अँधेरा,

एक ही  मौजू , एक ही फलसफा, एक ही दरिया, एक किनारा,

एक ही मौशिकी, एक ही तराना, पर बदलती सी हर आवाज़ है,

यूँ तो खुश दिखता है सबको , पर मेरे हिस्से का चाँद मुझसे नाराज़ है|

 

खुशनुमां सा है समां , शायद मेरी तबियत ही नासाज़ है,

यूँ तो खुश दिखता है सबको , पर मेरे हिस्से का चाँद मुझसे नाराज़ है|

 

                                                                                             --- देवांशु

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