मैं एक अधूरा खाब बुनता हूँ,
कुछ रुई के फाहों से बिखरे लम्हे,
कुछ तकली से संजीदा बीते दिन,
और उलझनों में फंस उनका घूमना,
एक-एक रेशा जिंदगी का,
आपस में लिपट-लिपट कर,
कुछ यूँ खिंचा चला आता है,
कि सांसों का धागा बनने लगता है|
फिर ढूंढ एक जुलाहे को वो धागा सौंप देता हूँ,
कि कोई तो एक राह दे,
उस बेमन और अटपटे से बने धागे को,
और वो उसे अपने औजारों से सजाने लगता है,
कुछ गांठे बंधती हैं, धागा तराश दिया जाता है,
मशीन पे चढा के खींचा भी जाता है,
मैं उन मशीनों की ताल में तुमको सुनता हूँ,
मैं एक अधूरा खाब बुनता हूँ…
कुछ रुई के फाहों से बिखरे लम्हे,
कुछ तकली से संजीदा बीते दिन,
और उलझनों में फंस उनका घूमना,
एक-एक रेशा जिंदगी का,
आपस में लिपट-लिपट कर,
कुछ यूँ खिंचा चला आता है,
कि सांसों का धागा बनने लगता है|
फिर ढूंढ एक जुलाहे को वो धागा सौंप देता हूँ,
कि कोई तो एक राह दे,
उस बेमन और अटपटे से बने धागे को,
और वो उसे अपने औजारों से सजाने लगता है,
कुछ गांठे बंधती हैं, धागा तराश दिया जाता है,
मशीन पे चढा के खींचा भी जाता है,
मैं उन मशीनों की ताल में तुमको सुनता हूँ,
मैं एक अधूरा खाब बुनता हूँ…
--देवांशु
bahut hi sanjeeda dev bhai.....
जवाब देंहटाएंथैंक्स आलोक भाई!!!
हटाएंकुछ रुई के फाहों से बिखरे लम्हे,
जवाब देंहटाएंकुछ तकली से संजीदा बीते दिन,
और उलझनों में फंस उनका घूमना,
एक-एक रेशा जिंदगी का,
खूबसूरत मुलायम से शब्दों से बुनी सुन्दर कविता.
और उतना ही बढ़िया कमेन्ट..शुक्रिया है जी !!!
हटाएंkuchh bulbule se uthe sapne
जवाब देंहटाएंkuchh bulbule se footte sapne
sapnee sabhee poore nahee hote
kuchh naa kuchh adhoore rhate
nice
शुक्रिया राजेंद्र जी ...
हटाएंशब्द और भाव बेजोड़ हैं आपकी रचना के...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
धन्यवाद नीरज जी....
हटाएंbajid kavita hae samarthak ban gai hoon aapbhi samrthak bne to mujhe khushi hogi.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी
हटाएंJo khwaab adhura na rehta to kavita poori kaun kehta...
जवाब देंहटाएंaivai hi ye selfish thought aaya itni achhi lines padhne k baad..
थॉट तो थॉट होता है, हैं जी!!!!!
हटाएंअधूरा ख्वाब ... मैं स्वतः बुनकर बन जाती हूँ , ताकि कोई धागा ना टूटे ...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंवाह, क्या लिखा है मैंने :P
हटाएंbahut hi khoobsurat .........!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंदेखना कहीं गाँठ ना पड़े...
जवाब देंहटाएंनर्म मुलायम ख्वाब बुनें..
सुन्दर!!!
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_02.html
जवाब देंहटाएंअरे वाह...बहुत अच्छे....आपके लेखन में गुलज़ार साहब की झलक है...
जवाब देंहटाएंनीरज
beautiful
जवाब देंहटाएंbahot sunder likhe hain......
जवाब देंहटाएंमशीन पे चढा के खींचा भी जाता है,
जवाब देंहटाएंमैं उन मशीनों की ताल में तुमको सुनता हूँ,
मैं एक अधूरा खाब बुनता हूँ…
क्या बात है देवांशु साहब रचना शीलता के शिखर पर हैं आप काया का अतिक्रमण कर प्रेम की सूक्ष्म काया को छू रहें हैं आप अपने कृतित्व में .
tumhara ye mood main bahut miss karta hoon.. pata nahin kyun mujhe senti"mental" posts jyada achhi lagti hain... :)
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..............
जल्द पूरा हो आपका ये ख्वाब.....
अनु