कि एक वक़्त आएगा...हाँ वो वक़्त भी आएगा...तब पूछूंगा ...
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...
हाँ ठीक उसी वक़्त जब मेरे सर से किसी का साया जा रहा था,
दोनों हाथ जोड़ मांगा था तुझसे कुछ, आँखों में आंसूं भी थे,
पर ऐसा छोड़ा हाथ तूने, मेरे हाथ कुछ भी ना लगा....
आँखों में आँखें डाल पूछूंगा तब, कि इसकी वजह क्या थी ...
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...
या उस दिन, जब चंद कागज़ के टुकड़ों पर लिखे मुट्ठी भर लफज़,
ख़त्म कर रहे थे दो जिंदगियां, बड़ी बेरहमी से,तू कहाँ था ?
यकीनन तेरी तामीरत से मुझे इनकार नहीं था ,
पर कह तो सही , हुई हमसे भी ऐसी खता क्या थी..
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...
सुना तू मशरूफ बड़ा है इन दिनों, किसी से मिलता नहीं,
तेरी ही कायनात के बाशिंदे हैं सारे, पर दिल तेरा पिघलता नहीं,
जो मौत है मुनासिब, तो वही मुक़र्रर कर,फिर मैं भी जानूं ,
खा गयी जो गुलशन मेरा, ऐसी बदसूरत खिज़ा क्या थी..
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...
हाँ ठीक उसी वक़्त जब मेरे सर से किसी का साया जा रहा था,
दोनों हाथ जोड़ मांगा था तुझसे कुछ, आँखों में आंसूं भी थे,
पर ऐसा छोड़ा हाथ तूने, मेरे हाथ कुछ भी ना लगा....
आँखों में आँखें डाल पूछूंगा तब, कि इसकी वजह क्या थी ...
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...
या उस दिन, जब चंद कागज़ के टुकड़ों पर लिखे मुट्ठी भर लफज़,
ख़त्म कर रहे थे दो जिंदगियां, बड़ी बेरहमी से,तू कहाँ था ?
यकीनन तेरी तामीरत से मुझे इनकार नहीं था ,
पर कह तो सही , हुई हमसे भी ऐसी खता क्या थी..
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...
सुना तू मशरूफ बड़ा है इन दिनों, किसी से मिलता नहीं,
तेरी ही कायनात के बाशिंदे हैं सारे, पर दिल तेरा पिघलता नहीं,
जो मौत है मुनासिब, तो वही मुक़र्रर कर,फिर मैं भी जानूं ,
खा गयी जो गुलशन मेरा, ऐसी बदसूरत खिज़ा क्या थी..
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...
--देवांशु
:(:(....
जवाब देंहटाएंआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है आपातकाल और हम... ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंया उस दिन, जब चंद कागज़ के टुकड़ों पर लिखे मुट्ठी भर लफज़,
जवाब देंहटाएंख़त्म कर रहे थे दो जिंदगियां, बड़ी बेरहमी से,तू कहाँ था ?
यकीनन तेरी तामीरत से मुझे इनकार नहीं था ,
पर कह तो सही , हुई हमसे भी ऐसी खता क्या थी..
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा क्या थी ...बहुत बढ़िया
कभी-कभी ऐसा लगता है कि वो मिल जाये तो पूछ डालें उससे ये सारे सवाल...
जवाब देंहटाएंक्या बात है जी वाह!
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंbahot sunder..
जवाब देंहटाएंdil ko chhu gayi....aap to shabdon se ni:shabd kah jaate hai...sadhu sadhu
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