एक पुराना गुलाब,
जब निकला मेरी किसी किताब से,
महक उठा मेरा सारा जहाँ|
कुछ पंखुड़ियों में ही सही,
पर वो तुम्हारा सारा प्यार,
आज भी मेरे पास,
कितना रोशन है|
पर जब हाथ से उठाकर,
चूमना चाहा उसे,
तो एक टुकड़ा, वैसे ही
टूट कर,
अलग हो पड़ा,
जैसे कतरा-कतरा,
तुम मुझसे दूर होती गयीं|
रख दिया है सहेज कर,
उसे फिर उसी किताब में,
कि फिर कभी
एक और टुकड़ा तोडूंगा ,
और फिर से जियूँगा,
आज तो जिंदगी,
महज़ इतनी ही काफी है….
जब निकला मेरी किसी किताब से,
महक उठा मेरा सारा जहाँ|
कुछ पंखुड़ियों में ही सही,
पर वो तुम्हारा सारा प्यार,
आज भी मेरे पास,
कितना रोशन है|
पर जब हाथ से उठाकर,
चूमना चाहा उसे,
तो एक टुकड़ा, वैसे ही
टूट कर,
अलग हो पड़ा,
जैसे कतरा-कतरा,
तुम मुझसे दूर होती गयीं|
रख दिया है सहेज कर,
उसे फिर उसी किताब में,
कि फिर कभी
एक और टुकड़ा तोडूंगा ,
और फिर से जियूँगा,
आज तो जिंदगी,
महज़ इतनी ही काफी है….
-देवांशु
bahut hi sundar
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder piroya hai aap ne
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
वाह..बेहतरीन रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
bahuta chha likha hai...bhaavuk rachna...
जवाब देंहटाएंhumaara bhi hausla badhaaye:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/08/blog-post.html
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/08/blog-post_04.html
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