एक माहिर तामीरत की तरह,
किसी कोरे कागज पर,
आड़ी टेढ़ी सी लकीरें खींच,
बनाया एक ईमारत का
नक्शा|
नीव-ए-उम्मीद बड़ी मेहनत से
रखी और सींची,
खडीं की चाहतों की
चार दिवारी,
एक एक कोने को,
आसमान के
खालिस सितारों से सजाया|
तैयार है मेरे सपनों का,
छोटा सा आशियाँ,
“तुम" आकर देख तो लो,
यकीनन “महल" बन जायेगा….
--देवांशु
ओह्ह्ह हो...बहुत खूब...गज़ब ढा रहे आज तो..:)
जवाब देंहटाएंअपनी दुनिया में जब खुश हो तुम
जवाब देंहटाएंमेरी इन आंखों में नमी रहने दो,
पाया सब कुछ जो मांगा खुदा से
बस एक तेरी यह कमी रहने दो.
--- कृष्णा
खूबसूरत एहसास॰
जवाब देंहटाएं“तुम" आकर देख तो लो,
जवाब देंहटाएंयकीनन “महल" बन जायेगा
किसी के होने से ज़िन्दगी में क्या फर्क पड़ता है को बयां करती आपकी ये रचना अप्रतिम है...बधाई स्वीकारें...
सुंदर भाव ...प्रभावित करती रचना
जवाब देंहटाएंआप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
जवाब देंहटाएंलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
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