मंगलवार, 6 जनवरी 2015

जो तुझमें वफ़ा होती...

जो तुझमे वफ़ा होती
तो कमसकम एक बार रूकती, मुड़ती ।
हाथ चूमती या गले लग जाती ,
और कहती मुझे जाने दो|

जाने शायद तब भी न देता,
तुम भी रूकती नहीं ।

पर तुम न ठहरी ,मुड़ के भी ना देखा ।
ना वो आखिरी बात का टुकड़ा पूरा हो सका ।
ना लफ़ज़ मिले उस सवाल को जो बाकी रहा।

वो कहते हैं न की कोई तो वजह रही होगी दूर जाने की
यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता ।

सुनो, उसी वजह जानने में ये ऊमर कटेगी ।
तब तक तू ही बता
कैसे मान लूं की तुझमे वफ़ा थी !!!

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