मंगलवार, 25 सितंबर 2012

तुम जो नहीं हो तो...



चाँद डूबा नहीं है पूरा, थोड़ा बाकी है |
वो जुगनू जो अक्सर रात भर चमकने पर,
सुबह तक थक जाता, रौशनी मंद हो जाती थी,
अभी भी चहक रहा है, बस थोड़ा सुस्त है |


यूँ लगता है जैसे रात पूरी, जग के सोयी है ,
आँख में जगने की नमी है,
दिल में नींद की कमी |
सूरज के आने का सायरन,
अभी एक गौरेया बजाकर गयी है |



अब चाँद बादलों की शाल ओढ़ छुप गया है ,
सो गया हो शायद, थक गया होगा रात भर चलता जो रहा |
मेरी मेज़ पर रखी घड़ी में भी,
सुबह जगने का अलार्म बज चुका है |
गमलों में बालकनी है, डालें उससे लटक रही हैं ,

फूल भी हैं , बस तुम्हारी खुशबू नहीं. महकती ...


-- देवांशु


(चित्र गूगल इमेजेस से)


15 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ तो है इन पंक्तियों में जो सुबह सा है, चाँद बेशक थक गया हो पर ताजगी बसी हुई है शब्दों में.
    और कुछ उपमाएं तो .....गज़ब...

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  2. उम्दा पंक्तियाँ ..
    भाषा सरल,सहज यह कविता,
    भावाव्यक्ति है अति सुन्दर।

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  3. बहुत सुन्दर......
    शेखर के ब्लॉग से यहाँ पहुंचे.....
    :-)
    बहुत बहुत सुन्दर...

    अनु

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  4. अब तो यहाँ इस पोस्ट की तारीफ करते भी अजीब लग रहा है... चलो फिर भी कह देते हैं, अगली बार से ऐसी पोस्ट डालने से पहले सोच लेना....
    खैर ऑन ए सीरियस नोट

    "बहुत बेकार सी पोस्ट है.. "

    भाई हम आज सीरियस हो ही नहीं सकते... ;-) :P

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  5. बहुत खूब महाराज ...


    कुछ तो फर्क है, कि नहीं - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  6. बहुत ऊंची टाइप कविता हो गयी।

    चांद अगर आदमी होता तो मानवाधिकार आयोग में रपट लिखता कि ये कवि लोग उसको बहुत रगड़ते हैं। कभी आधा निकाल, आधा डुबाया, शाल उड़ाया, थका दिया , चला दिया, रोक दिया। मतलब चांद न हुआ पेट्रोल के दाम हो गये कि कोई पक्का ठिकाना ही नहीं। :)


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    1. ha ha ha..
      चाँद की डिमांड है कि उसे मनमोहन सिंह जैसी स्टेबलिटी दी जाय...:-)

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  7. चांद चाहे थक कर सो जाये आदमी को तो सूरज के साथ उठना ही है चलना भी है ।
    उनींदेपन से जगाती कविता किसी के ना होने का अहसास दिलाती सी ।

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