गुरुवार, 11 जुलाई 2013

ज़िन्दगी !!!


ज़िन्दगी!!! एक अनसुलझे सवालों की किताब है,
है समंदर सी फैली , बादलों सी घिरी और न जाने क्या - क्या,
कुछ अधुरी सी , पर क्या , पता नहीं, न जवाब मालूम,
न जानने का सबब है, न जानने को बेताब है..
ज़िन्दगी एक अनसुलझे सवालों की किताब है|

है दरिया भी मिल चुका साहिलों से अब ,
जानते हुए सब कुछ, न जाना है इसने कुछ भी,
रहता है अश्क बनके खाबों का टूटा सफ़र आज भी,
ज़िन्दगी समझ लो बस ऐसा ही एक एक खाब है,
ये ज़िन्दगी ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है|

ज़ब दिल की दस्तक पर सिहर नहीं उठती,
उठता है तो सिर्फ दर्द, और दर्द का एक बहाना,
ज़ब हर वक़्त लगता है की कल कितना खुशनुमा था,
मांगती धड़कनों से भी उनके चलने का हिसाब है,
बस यही ज़िन्दगी है और ये ज़िन्दगी,
ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है...

--देवांशु