गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे


मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

जीते थे जिनके नाम पर मरते थे उन्ही पे,
थे सुनते ,थे गाते , सदके उन्ही के,
न रहने को मंजर न पिलाने को साकी,
न सहने को दर्द का किनारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

हैं चुभते फूल इन पलकों, इन आँखों में ,
हैं बस गए आंसूं समझकर घर, इन आखों में,
न जीने को जीवन, न मरने को मौत,
न पीने को पानी, न सांसों का इशारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||

मयस्सर नहीं खुदा तो इन्सां ही गंवारा कर दे,
नहीं तो कम से कम वो वक़्त दुबारा कर दे||