मंगलवार, 26 जून 2012

वो वक़्त भी आएगा..

कि एक वक़्त आएगा...हाँ वो वक़्त भी आएगा...तब  पूछूंगा ...
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा  क्या थी ...

हाँ ठीक उसी वक़्त जब मेरे सर से किसी का साया जा रहा था,
दोनों हाथ जोड़ मांगा था तुझसे कुछ, आँखों में आंसूं भी थे,
पर ऐसा छोड़ा हाथ तूने, मेरे हाथ कुछ भी ना लगा....
आँखों में आँखें डाल पूछूंगा तब, कि  इसकी वजह क्या थी ...
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा  क्या थी ...

या उस दिन, जब चंद कागज़ के टुकड़ों पर लिखे मुट्ठी भर लफज़,
ख़त्म कर रहे थे दो जिंदगियां, बड़ी बेरहमी से,तू कहाँ था ?
यकीनन तेरी तामीरत से मुझे इनकार नहीं था ,
पर कह तो सही , हुई हमसे भी ऐसी खता क्या थी..
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा  क्या थी ...

सुना तू मशरूफ बड़ा है इन दिनों, किसी से मिलता नहीं,
तेरी ही कायनात के बाशिंदे हैं सारे, पर दिल तेरा पिघलता नहीं,
जो मौत है  मुनासिब, तो वही मुक़र्रर कर,फिर मैं भी जानूं ,
खा गयी जो गुलशन मेरा, ऐसी बदसूरत खिज़ा क्या थी..
बता सकता है तो बता, कि उस वक़्त तेरी रज़ा  क्या थी ...
 --देवांशु