एक टुकड़ा आस की वो सिहरन,
कि जब ये अहसास हो,
दूरी हमारे बीच कुछ बढ़ सी गयी है|
आ गयी है चटक उस रिश्ते में,
जो पाक था दोनों ही दिलों में,
और नज़रों में बसा वो अँधेरा,
चादर पे पड़ी कोई सलवट तो नहीं,
जिसे कोई सीधाकर हटा दे|
कि जब ये अहसास हो,
दूरी हमारे बीच कुछ बढ़ सी गयी है|
आ गयी है चटक उस रिश्ते में,
जो पाक था दोनों ही दिलों में,
और नज़रों में बसा वो अँधेरा,
चादर पे पड़ी कोई सलवट तो नहीं,
जिसे कोई सीधाकर हटा दे|
रोशनी और आग,
दोनों लिए एक मोमबत्ती,
जिसका मोम खत्म ना होता हो,
बस घटता रहता हो,
कुछ उसी तरह जीता हूँ अब,
दिखता खुश एक आग समेटे,
और मोम बन घटे जा रही है
ये जिंदगी “तुम" बिन….बस!!!!
-- देवांशु