गुरुवार, 21 जुलाई 2011

एक सिक्का प्यार का…

वो चंद सिक्के,
जो तुमने कभी ,
बड़े अपनेपन से,
लड़ झगड़ कर,
उस सड़क किनारे बैठे,
चाय वाले से वापस लिए थे |

चाय कुछ ज्यादा,
मीठी हो गयी थी,
और बारिश केवल छू के गुज़री थी,
भीगा तो मै सिर्फ,
तुम्हारे प्यार में था|


थोड़ा सा ही था प्यार,
और ज़रा सा,
इकरार…
Pyar-hua-iqrar-hua
और फिर जब तुम,
चली गयी मेरी दुनिया से,
वो चाय वाला भी ,
हँसता सा दिखता है मुझपे|


और मैं,
अक्सर फैला लेता हूँ,
वही सिक्के,
अपने बिस्तर पर,
की इन्ही में तो था,
वो हक, वो एहसास|


सोंचता हूँ ,
एक दिन इन्हें उसी,
चाय वाले को दे आऊँगा..
कि कभी तो तुम आओगी वहाँ,
इन सिक्कों से ही सही,
मुझे याद कर लेना,
इनकी कीमत अदा हों जायेगी…..
-- देवांशु